एक बार की बात है। एक नदी में दो पानी के बुलबुले उठे। एक बुलबुला बहुत आत्मविश्वासी था, जबकि दूसरा बुलबुला डर और घबराहट से कांप रहा था।
काँपता हुआ बुलबुला बोला:
“मुझे डर लग रहा है। यह संसार बहुत बड़ा है और मैं तो एक छोटा-सा बुलबुला हूँ। क्या मैं टिक पाऊँगा?”
दूसरे बुलबुले ने शांति से मुस्कुराते हुए कहा:
“भाई, भले ही हम थोड़े समय के लिए जीवित रहें, पर हम इस नदी का एक हिस्सा हैं। हम पानी से ही पैदा हुए हैं और अंत में पानी में ही मिल जाएँगे। हमारी ज़िंदगी छोटी है, पर वह अर्थपूर्ण हो सकती है।”
पहला बुलबुला बोला:
“लेकिन हमारा अस्तित्व तो कुछ ही पलों का है। हम क्या बदल सकते हैं?”
दूसरे बुलबुले ने धीरे से उत्तर दिया:
“परिवर्तन इस बात पर नहीं निर्भर करता कि हम कितने समय तक जीते हैं, बल्कि इस पर कि उस समय में हम क्या करते हैं। यदि हम चमक सके, अपना प्रकाश फैला सके, तो वे पल भी अमर बन सकते हैं।”
यह सुनकर पहला बुलबुला शांत हो गया… और दोनों बुलबुले हवा में उछले, तेज़ से चमके… और कुछ पलों बाद पानी में विलीन हो गए।
सीख:
जीवन भले ही छोटा हो, लेकिन उसकी कीमत हमारे कर्मों में है। डर नहीं, विश्वास के साथ जीना ही सच्चा जीवन है।