एक रामपुर नाम का गाँव था। उस गाँव में रवि नाम का एक लड़का अपने परिवार के साथ रहता था। रवि के परिवार में उसकी माँ, उसके पिता, उसका छोटा भाई और कई छोटी बहनें थीं। उसके पिता पहले से ही बहुत गरीब थे। वे मजदूरी पर जाकर अपना गुज़ारा करते थे। वे रोज़ मजदूरी करने जाते और शाम को घर लौटते, तब जाकर घर का खर्च चलता।रवि को पढ़ाई का बहुत शौक था। वह सुबह-सुबह अपने छोटे से खेत में काम करता और दोपहर को स्कूल जाता। लेकिन उसे पढ़ाई में इतना ज़्यादा मन लगने लगा था कि वह आगे की पढ़ाई करना चाहता था। मगर उसका परिवार बहुत गरीब था, इसलिए उसके पास किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उसके पिता ही अकेले कमाने वाले थे। उनकी कमाई से घर का खर्च निकलता और तीन बच्चों की पढ़ाई के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा ही बचता।फिर एक दिन रवि ने बैठकर सोचा, “अब मैं अपने पिताजी की मदद करूंगा। अब मैं पढ़ाई नहीं करूंगा, लेकिन अपने छोटे भाई-बहनों को ज़रूर पढ़ाऊंगा। मैं कुछ नया, एक छोटी सी शुरुआत करूंगा, जिससे पापा को मदद मिल सके।”बेचारे रवि को गरीबी के कारण अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
एक नई शुरुआत
रवि ने एक नई शुरुआत की। रवि का परिवार गरीब था, लेकिन उसके पिताजी एक बहुत स्वादिष्ट चटनी बनाते थे। वह चटनी रवि के आस-पास के घरों को बहुत पसंद आती थी। यह देखकर रवि ने सोचा, “अगर मैं यह स्वादिष्ट चटनी बेचना शुरू करूं, तो कुछ आमदनी हो सकती है।”यही सोचकर रवि ने अगले ही दिन चटनी बनाना सीखना शुरू किया। वह सुबह जल्दी उठकर अपने पापा के साथ चटनी बनाना सीखने लगा। एक-दो दिन में उसने चटनी बनाना सीख लिया और फिर उसे बेचना शुरू कर दिया।हालाँकि उसकी चटनी ज्यादा बिकती नहीं थी, फिर भी वह सिर पर एक छोटी टोकरी लेकर घर-घर घूमता और चटनी बेचने निकल जाता। रवि पूरे दिन मेहनत करता, लेकिन बस इतना ही पैसा आता कि चटनी के सामान का खर्च निकल पाता। उसकी चटनी कोई खास खरीदता नहीं था।फिर भी रवि ने हिम्मत नहीं हारी। वह हर सुबह जल्दी उठकर चटनी बनाता और बेचने निकल जाता। कई दिन ऐसे ही बीत गए। आस-पास के लोग उसकी मज़ाक उड़ाते थे—”तेरी चटनी कौन खरीदेगा?”, “ये चटनी तो बिकेगी ही नहीं”, “कोई उम्मीद नहीं है”—ऐसी बातें लोग करते थे।कभी-कभी रवि को खुद भी लगता कि शायद ये काम नहीं चलेगा, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह हार नहीं मानेगा।कुछ दिन और बीते, धीरे-धीरे रवि की चटनी लोगों को पसंद आने लगी। उसने चटनी बेचना बंद नहीं किया। थोड़े-थोड़े करके ग्राहक बढ़ने लगे और कमाई भी होने लगी। अब इतना पैसा आने लगा कि घर का कुछ खर्च चल सके और उसके छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई के लिए भी पैसे निकलने लगे।रवि ने कुछ पैसे बचाकर एक पुरानी साइकिल खरीदी और अब वह उसी साइकिल पर चटनी बेचने निकलता।
अब रवि अपनी साइकिल पर गाँव-गाँव घूमता और शहर की ओर भी चटनी बेचने जाने लगा। शहर में भी उसने चटनी बेचना शुरू कर दिया। जब चटनी की माँग बढ़ने लगी, तब रवि को ज्यादा चटनी बनानी पड़ती थी।उस समय उसके पिताजी और माँ दोनों ने रवि की मदद करनी शुरू की। तीनों लोग सुबह-सुबह मिलकर चटनी बनाते, और फिर रवि गाँव-गाँव और शहर-शहर जाकर चटनी बेचता। ऐसा रोज़ चलता रहा और रवि अब पहले से ज़्यादा पैसे कमाने लगा।फिर उसने कुछ और बचत की और अपने छोटे भाई-बहनों को एक अच्छी स्कूल में दाखिला दिलवाया। उसके भाई-बहन भी पढ़ाई में बहुत आगे थे। वे खूब मेहनत करते और मन में यही सोचते कि जब वे बड़े होंगे, तो अपने बड़े भाई रवि की मदद ज़रूर करेंगे।
जब रवि शहर में चटनी बेचने जाता, तब वहाँ एक ग्राहक रोज़ उसकी चटनी लेने आता था। वह व्यक्ति धीरे-धीरे रवि का खास दोस्त बन गया। उनके बीच अच्छी दोस्ती और भाईचारा हो गया। एक दिन उस ग्राहक ने रवि को सुझाव दिया, “तुम शहर में एक छोटी सी दुकान खोल लो।”यह सुझाव रवि को बहुत अच्छा लगा। उसने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली और वहीं से चटनी बेचना शुरू कर दिया। समय बीतने के साथ उसकी चटनी की बिक्री बढ़ने लगी। अब रवि फोन पर भी ऑर्डर लेने लगा और लोगों को घर-घर जाकर चटनी पहुँचाने लगा।जब उसकी दुकान अच्छी चलने लगी, तो उसने दो लड़कों को काम पर रखा। रवि ऑर्डर लेता और वे दोनों लड़के डिलीवरी करने जाते। उसके मम्मी-पापा चटनी बनाने में रवि की मदद करते।धीरे-धीरे रवि को सफलता मिलने लगी। आसपास के होटलों से भी उसे चटनी के ऑर्डर मिलने लगे, क्योंकि उसकी चटनी इतनी स्वादिष्ट थी कि लोग उसे बहुत पसंद करने लगे। अब शहर में भी उसकी चटनी की काफी तारीफ़ होने लगी थी।इस तरह, रवि लगातार मेहनत करता गया और धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया।
एक दिन रवि ने सोचा कि अब वह एक छोटी सी चटनी बनाने वाली कंपनी की शुरुआत करेगा। उसने शहर के पास एक छोटी सी ज़मीन खरीदी और वहाँ कंपनी स्थापित करने का निश्चय किया। धीरे-धीरे उसने मेहनत करके अपनी चटनी कंपनी की स्थापना की और उसका संचालन शुरू किया।रवि की चटनी स्वादिष्ट और गुणवत्ता में बेहतरीन थी, इसलिए लोग उसे बहुत पसंद करते थे और उसकी खूब तारीफ़ करते थे। उसकी चटनी देश-विदेश में भी प्रसिद्ध हो गई थी।इसी तरह समय बीतता गया, उसके छोटे भाई-बहन भी पढ़-लिखकर बड़े हो गए। कंपनी भी अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी थी। उसका छोटा भाई कंपनी में मैनेजर की पोस्ट संभालने लगा और उसकी बहन ऑनलाइन ऑर्डर और देश-विदेश के ऑर्डर की ज़िम्मेदारी निभाने लगी।इस तरह रवि को एक बड़ी सफलता मिली। उन्होंने शहर में एक अच्छा-सा मकान भी ले लिया, जहाँ पूरा परिवार शांति और खुशी से रहने लगा। उनका परिवार बहुत खुश था और कंपनी भी अच्छे से चल रही थी।जो रवि कभी सिर पर टोकरी रखकर चटनी बेचने जाया करता था, आज उसकी कंपनी में 100 से भी ज़्यादा लोग काम कर रहे हैं।इस तरह रवि को एक शानदार सफलता मिली।
एक समय था जब रवि के पास खाने के लिए और अपनी पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे।आज वही व्यक्ति एक कंपनी का मालिक है और दूसरों को रोज़गार देता है।अगर उस दिन रवि हार मानकर पीछे हट गया होता, तो आज वह एक सफल इंसान नहीं बन पाता।
सीख
ज़िंदगी में सफल होने के लिए बड़े संसाधनों या पैसों की ज़रूरत नहीं होती,
ज़रूरत होती है तो हिम्मत, मेहनत और धैर्य की।
आप भी अपनी काबिलियत और मेहनत पर विश्वास रखें,
एक दिन आपको भी सफलता ज़रूर मिलेगी।

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