पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गाँव था। वहाँ दीपक नाम का एक लड़का रहता था। उसी गाँव में उसके शिक्षक, यानी गुरुजी भी रहते थे।
दीपक छोटे से गाँव में रहता था। उसका परिवार बहुत ही गरीब था। परिवार की गरीबी के कारण दीपक भी नकारात्मक सोचने लगा था। वह सोचता था कि मैं अपनी ज़िंदगी में कभी आगे नहीं बढ़ पाऊँगा। वह पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देता था। दीपक की नकारात्मक सोच की वजह से उसे मन ही मन ऐसा लगता था कि उसकी ज़िंदगी कभी नहीं बदलेगी।
दीपक अगले दिन पहाड़ के नीचे पहुँच गया। थोड़ी देर में गुरुजी भी वहाँ आ गए। गुरुजी ने दीपक से कहा, “दीपक, क्या तुम्हें ये बड़े पत्थरों का ढेर दिखाई दे रहा है? तुम्हें रोज़ इस ढेर में से एक-एक पत्थर लेकर पहाड़ की चोटी तक चढ़ाना है।”
दीपक ने पूछा, “लेकिन क्यों गुरुजी?”
गुरुजी ने कहा, “तू बस चढ़ा, मुझे कुछ काम है। वह मैं तुझे बाद में बताऊँगा।”
दीपक ने गुरुजी की बात का सम्मान करते हुए कहा, “ठीक है गुरुजी, मैं रोज़ आकर एक-एक पत्थर पहाड़ की चोटी तक चढ़ा दिया करूँगा।”
दूसरे दिन से दीपक ने रोज़ पत्थर चढ़ाना शुरू कर दिया। शुरू में दीपक थक जाता था, थोड़ी देर पानी पीने के लिए रुक जाता था, थकान के कारण बैठ भी जाता था। कई बार तो उसका मन ही नहीं करता था कि वह पत्थर चढ़ाए। लेकिन गुरुजी ने कहा था, इसलिए उसे काम तो करना ही था।
कुछ दिन बीत गए। उसके शरीर को अब धीरे-धीरे पत्थर चढ़ाने की आदत हो गई। उसके शरीर से आलस दूर होने लगा और धीरे-धीरे वह बिना रुके पत्थरों को चोटी तक चढ़ा देता था। अब उसके शरीर में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास आ गया था। वह अब जैसे खेलते-खेलते और खुशी-खुशी पत्थरों को चोटी तक ले जाने लगा।
कुछ दिन और बीते और एक महीना हो गया। अब उस पत्थरों के ढेर में सिर्फ एक पत्थर बचा था। तभी गुरुजी वहाँ आए और बोले, “दीपक, रुको, मेरी बात सुनो।”
दीपक रुका और कहा, “हाँ गुरुजी, कहिए।”
गुरुजी ने पूछा, “दीपक, तुम इतने दिनों से रोज़ ये पत्थर पहाड़ की चोटी तक चढ़ाते हो, तो तुम्हें कैसा लगा?”
दीपक ने जवाब दिया, “गुरुजी, शुरुआत में तो बहुत मुश्किल लगा। मैं थोड़ी देर बाद रुक जाता था, पानी पीने बैठता था, थक जाता था। कई बार तो मेरा मन ही नहीं करता था चढ़ाने का। लेकिन अब मेरे शरीर को इसकी आदत हो गई है। अब तो मैं बहुत उत्साह और खुशी से पत्थर चढ़ाता हूँ।”
गुरुजी मुस्कराए और बोले, “दीपक, जीवन भी कुछ ऐसा ही है। जीवन में कभी भी एक ही दिन में सफलता नहीं मिलती, लेकिन अगर तुम रोज़ एक-एक कदम सफलता की ओर बढ़ाते रहोगे, तो एक दिन तुम्हें ज़रूर सफलता मिलेगी।”
सीख:
सफलता किसी जादू से या एक दिन की मेहनत से नहीं मिलती, बल्कि रोज़ एक छोटा कदम लेते हुए, एक दिन आप अपने सपने को पूरा कर सकते हैं।
हमें जीवन में कभी भी अपने हाथों की काबिलियत और आत्मविश्वास पर शक नहीं करना चाहिए, और नकारात्मक विचारों को अपने मन में आने नहीं देना चाहिए।